Wednesday, March 28, 2007

कुछ और कविताऎं

उमेश डोभाल की कुछ और कविताऎं..

"वे कौन हैं
जो प्रत्येक सुबह चिड़ियों के चहचहाने से पहले उठ जाते हें
और बिछ जाते हैं हर उस जगह
जहां से तुम्हें गुजरना होता है
अपने महत्वाकांक्षी सपनों के साथ
इस खूबसूरत पृथ्वी पर वे प्रत्येक जगह हैं
अपने श्रम की सम्पूर्ण महक के साथ
गाँव में वे जमीन हैं
जमीन पर ओंधे लेटे हुए मानो तो शहर भी वे ही हैं
शहर भर को उठाये हुए
और नहीं भी हैं कहीं
वे लाखों लोग जो तुमसे ज्यादा हैं और ताकतवर भी
आखिर कोई कब तक किसी को रोक सकता है
जमीन पर सीधे खड़े होने से"


"राख होते शरीर को
सहानभूति की जरूरत नही है
जरूरत जिंदा औरतों को
उनके सपने बताने की है"

"मैं प्यार करता हूं
पहाड़ी सड़क के मोड़ से
ढलान पर उगे चीड़ वन
अच्छे लगते हैं
कितने अच्छे हैं वे गीत
जो बेजुबानों की जुबान हो
जो अनपढ़ रूप हों प्यार के
मैं उन्हें तरसाना चाहता हूं"

शेष कल....

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