Saturday, March 31, 2007

अंतिम भाग

ये कविताऎं हैं जो श्री उमेश डोभाल की क्रांतिकारी भावनाओं को व्यक्त करती हैं .

“छाये नहीं फूटे
मौसम भी खिलाफ कर दिया गया
गांवों में यकबयक बढ़ गयी है उम्र
पेड़ों की तरह गायब होने के लिये
यह हमला बहुत संगीन है
इसके खिलाफ बोलना होगा
हथियार उठाने हौंगे”


“सरपट भागते घोड़े की तरह नहीं
अलकनंदा के बहाव की तरह
धीरे धीरे आयेगा बसंत
बसंत की पूर्व सूचना दे रहे हैं

मिट्टी पानी और हवा से ताकत लेकर
तने से होता हुआ
शाखाओं में पहुंचेगा बसंत

अंधेरे में जहां आंख नहीं पहुंचती
लड़ी जा रही है एक लड़ाई
खामोश हलचलें
अंदर ही अंदर जमीन तैयार कर रही हैं
जागो! बसंत दस्तक दे रहा है”

उमेश की अंतिम कविता जो कि कहा जाता है कि उन्होंने अपनी हत्या से कुछ समय पहले लिखी थी

“मैने जीने के लिये हाथ उठाया
और पटक दिया गया
मैने स्वपन देखे
और चटाई की तरह
अपनों के बीच बिछ गया
उठाकर फैंक दिया गया
अंधेरी भयावह सुरंग के बीच
बिछा
उठाकर फैंक दिया गया
अंधेरी भयावह सुरंग में
रोशनी मैने वहां भी तलाश की
अब मैं मार दिया जाऊंगा
उन्ही के नाम पर
जिनके लिये संसार देखा है मैंने”

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